Sunday, May 25, 2014

मधुमास मेरा

मैं लता तुम पेड़
अस्तित्व मेरा 
ज्यों धरा सा घूमना 
भाग्य मेरा. 
सूर्योद्य सा आना 
मन-पटल में 
एक अजर अथाह  
मधुमास मेरा  - अकुभा

Impasse


Sunday, May 11, 2014

यादें

कल जो बरसी थी घटा
बैठी आज पलकों पर
बरसने को है तैयार
किसी भी पल ।

टपकती बूँदों में
उभरता एक चेहरा
ख़ामोश हृदय में
जैसे रुकी सी हलचल ।

हवा का एक झोंका
पलटता है कई पन्ने
गीले सी यादों से
सराबोर भू तल ।  अकुभा 

एक और मृगतृष्णा

एक और मृगतृष्णा

एकाकी बिस्तर पर
सिरहाने बैठी वह
सपने संजोती है
काग़ज़ की नाव पर
हिचकोले खाती वह
मोती पिरोती है

मेरे मनपृष्ठ पर
आड़ी और तिरछी
रेखाएँ खींचती
बरसती मेघ बन
एक नयी वासना से
भूमि को सींचती

सूक्ष्म है, स्थूल है
मेरे मनप्राण में
संगीत की वीणा है
या मरुस्थल में
स्वयंभूत उपजी
एक और मृगतृष्णा है - अकुभा