Saturday, September 10, 2016

कविता

कविता

मैंने तेरे लिए कभी लिखी थी
एक कविता
बरसों की दूरी ने
परत दर परत
उस कविता पर चढ कर
उसे भारी भरकम बना दिया
कभी दिन रात उस कविता को
भर भर गिलास
पीते थे हम दोनों
और अरमानों के पंख लगा
उड़ते तस्सुवरों के आकाश में
वो बर्फ़ सी पथराई
आज पड़ी है
एल्बम के पन्नों के बीच।
- अकुभा

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