Thursday, November 3, 2016

अब मेरी बारी है

आज की कविता:
(If you like it please share it)

बहुत कह चुके तुम अब मेरी बारी है

हृदय की धड़कन शब्दों पर भारी है
बहुत कह चुके तुम अब मेरी बारी है

सच की तलाश में आए हैं हम, और
तुम्हें अफवाहें फैलाने की बीमारी है

कतरा कतरा ज़िन्दगी होती है ज़ाया
जाने कब से यह सिलसिला जारी है

कोटी कोटी भूखे बीमार जिस्मों को
नि:शब्द शोषण सहने की लाचारी है

कितनी आवाज़ें तुम तक पहुंचती नहीं
सिंहासन पर बैठे हो, ऊँची सवारी है

बहुत हुए हर दिन राजनीति के छलावे
वायदे तोड़नेवाले झूठ के व्यापारी हैं

तुम्हारे पापों का घड़ा भर रहा पल पल
छलकेगा जिस दिन समझना आखरी है

देखो वक्त रहते सम्भल जाओ, वरना
क्रोधित जनता का हाथ बहुत भारी है

बहुत कह चुके तुम अब मेरी बारी है.

-अकुभा

No comments: