Sunday, June 6, 2010

दिल अगर ढोल होता हम ज़रूर बजाते

हम main door पे बैठे थे
वो पिछवाड़े से निकल गए
मन में था चोर उनके
वर्ना यूं नज़र न चुराते

गाने तो हजारों सोचे थे
गाने की सूरत न बनी
दिल अगर ढोल होता
हम ज़रूर बजाते

जोर तो हमने खूब दिया
उनहोंने एक ना सुनी
बरसो पकाई थी खिचड़ी
एक चम्मच तो खा जाते

सामने की खिड़की में
पर्दा रह रह के हिलता था
हम आँख गडाए बैठे थे
उनका क्या जाता जो थोडा सा दिख जाते

ज़माने से कोइ शिकवा नहीं
उससे तो हमें कोइ आस न थी
चैन सा रूह को आ जाता
गर सुलगती को थोड़ी हवा दे जाते

दिल अगर ढोल होता
हम ज़रूर बजाते
दिल अगर ढोल होता
हम ज़रूर बजाते