Monday, March 19, 2012

Dedicated to Veena Kapur

अब चलें घर

सूरज अपनी किरणे लुटा कर

आकाश में कहीं सो गया

अब चलें घर

दिए की बाती को संवार कर

आँगन में रोशनी करें

जिन कोनों में सूरज के

जाने से अँधेरा होगया है

उन्हें फिर से उजाला करें

अब चलें घर

Dedicated to Ashok Kapur - who remains in our memory

Our friend Ashok Kapur left us for heavenly abode yesterday.

समय के प्रहरी ने घंटी बजायी है
एक और पहर पर सांझ घिर आयी है
भविष्य की कोख से अंकुरण को आतुर
लम्बी हो चली आज की परछाई है