कविता
मैंने तेरे लिए कभी लिखी थी
एक कविता
बरसों की दूरी ने
परत दर परत
उस कविता पर चढ कर
उसे भारी भरकम बना दिया
कभी दिन रात उस कविता को
भर भर गिलास
पीते थे हम दोनों
और अरमानों के पंख लगा
उड़ते तस्सुवरों के आकाश में
वो बर्फ़ सी पथराई
आज पड़ी है
एल्बम के पन्नों के बीच।
- अकुभा
मैंने तेरे लिए कभी लिखी थी
एक कविता
बरसों की दूरी ने
परत दर परत
उस कविता पर चढ कर
उसे भारी भरकम बना दिया
कभी दिन रात उस कविता को
भर भर गिलास
पीते थे हम दोनों
और अरमानों के पंख लगा
उड़ते तस्सुवरों के आकाश में
वो बर्फ़ सी पथराई
आज पड़ी है
एल्बम के पन्नों के बीच।
- अकुभा
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