एक और मृगतृष्णा
एकाकी बिस्तर पर
सिरहाने बैठी वह
सपने संजोती है
काग़ज़ की नाव पर
हिचकोले खाती वह
मोती पिरोती है
मेरे मनपृष्ठ पर
आड़ी और तिरछी
रेखाएँ खींचती
बरसती मेघ बन
एक नयी वासना से
भूमि को सींचती
सूक्ष्म है, स्थूल है
मेरे मनप्राण में
संगीत की वीणा है
या मरुस्थल में
स्वयंभूत उपजी
एक और मृगतृष्णा है - अकुभा
एकाकी बिस्तर पर
सिरहाने बैठी वह
सपने संजोती है
काग़ज़ की नाव पर
हिचकोले खाती वह
मोती पिरोती है
मेरे मनपृष्ठ पर
आड़ी और तिरछी
रेखाएँ खींचती
बरसती मेघ बन
एक नयी वासना से
भूमि को सींचती
सूक्ष्म है, स्थूल है
मेरे मनप्राण में
संगीत की वीणा है
या मरुस्थल में
स्वयंभूत उपजी
एक और मृगतृष्णा है - अकुभा
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