कल जो बरसी थी घटा
बैठी आज पलकों पर
बरसने को है तैयार
किसी भी पल ।
टपकती बूँदों में
उभरता एक चेहरा
ख़ामोश हृदय में
जैसे रुकी सी हलचल ।
हवा का एक झोंका
पलटता है कई पन्ने
गीले सी यादों से
सराबोर भू तल । अकुभा
बैठी आज पलकों पर
बरसने को है तैयार
किसी भी पल ।
टपकती बूँदों में
उभरता एक चेहरा
ख़ामोश हृदय में
जैसे रुकी सी हलचल ।
हवा का एक झोंका
पलटता है कई पन्ने
गीले सी यादों से
सराबोर भू तल । अकुभा
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