Tuesday, July 5, 2022

कवि

 तुम कवि हो

देखते हो फूल 

बमों के गहराते धुएं मे

सुगंध महकाती है 

तुम्हारी कल्पना को

जहां इन्सानों के चीथड़े

सड़ रहे हों

इसी धुएं से उठेगी 

एक सुबह,

और शायद सींच देगी

शाहों के सूखे दिल ।


- अकुभा

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