बहुत से हैं
हम में से
जो लड़े भी नहीं
जिन्होंने न गुलाब देखे
न बिलखते बच्चे के
आँसू पोंछे
केवल रोटियों को चुपड़ने
के प्रयास को
जीवन का लक्ष्य समझते रहे
पेट पर हाथ फेर
डकार का जिहाद करते रहे
उनके चेहरे शून्यवत्
आँखे पथराई हों
कब्र में उतारते
या चिता पर रखते
तो क्या आश्चर्य।
- अकुभा
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