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आंखो में भरे हों आंसू
नशा हो, उन्मादी उबाल हो
या दंभ का साया हो,
जहालत की मकड़ी ने
बनाया एक जाल हो,
झूठी परम्पराओं ने
अंधेरा कर डाला हो
गुरबत की मजबूरी ने
धूसर कर डाला हो आईना
तो साफ नहीं दिखाता
सब कुछ साफ हो
तो उल्टा लिखा भी
सीधा पढ़ लेती हैं आंखें
- अकुभा
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