तुम कवि हो
देखते हो फूल
बमों के गहराते धुएं मे
सुगंध महकाती है
तुम्हारी कल्पना को
जहां इन्सानों के चीथड़े
सड़ रहे हों
इसी धुएं से उठेगी
एक सुबह,
और शायद सींच देगी
शाहों के सूखे दिल ।
- अकुभा
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