Friday, June 26, 2015

अब कविता की बारी है

अब कविता की बारी है
शाम की छटा
है बड़ी सुंदर
चिडियों का कोलाहल
पास के नीम पर
पश्चिम में ढलता सूरज
नारंगी बादल
काले पूरब पर
रंगों का खेल
बदलता पल पल
पेड़ों की छाया
पहले थी श्यामल
हो गई धूमिल
कहीं किसी झींगुर ने
लगाई है तान
नींद तो आयेगी
है दिन भर की थकान
सांझ ढलने से पहले
करने हैं कुछ काम
रात तो प्यारी है
देगी बहुत आराम
पंछियों का कोलाहल
हो रहा शांत
अब सोने की तैयारी है
अब कविता की बारी है।
- अकुभा

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