Friday, June 26, 2015

सपने - a short story

सपने
राजू को शहर आए दो महीनों से कुछ अधिक हो चुका था। इन दो महीनों में उसने कई हाथ पैर मारे काम की तलाश में। पहले उसने कई कारखानों में नौकरी तलाशने की कोशिश की। एक जगह उसे काम मिलते मिलते रह गया। वहां पत्थर की मूर्तियां बनती थी। सुपरवाइजर ने राजू से छोटी छोटी मूर्तियों पर एक मशीन से पालिश करने को कहा । पहली ही बार मूर्ति हाथ से छिटक कर गिर गई और टूट गई। निराश राजू फिर से काम की तलाश में लग गया ।
गांव से चलते समय मां के पास आशीर्वाद के अलावा देने को कुछ विशेष न था फिर भी उसने राजू को कुछ पैसे एक पडोसी से ऊधार मांग कर दिए थे। राजू दिन में एक समय रूखा सूखा खाता ताकि उन पैसों से अधिक से अधिक दिनों तक गुजारा कर सके।
कई दिनों तक काम नहीं मिला। आखिर उसने सबजी मंडी में हमाली का काम शुरू किया । वह मंडी में घूमता रहता और किसी ग्राहक को भारी सामान के साथ देखता तो जाकर कहता - लाईये मैं ले चलता हूँ । दिन भर कोशिश करने पर वह कुछ रुपए कमा लेता। रात में वहीं किसी दुकान के बाहर वह सो जाता ।
फिर एक दिन एक दुकानदार ने राजू को बुलाया और कहा - काम करोगे? राजू के गले से आवाज ही न निकली। अरे, गूंगे हो क्या या सांप सूंघ गया?
करूंगा जनाब। क्या करना होगा। राजू ने हडबडा कर कहा।
इस रहडे पर सब्जी लादो और गोल चक्कर के पार वैश्णव होटल पर पहुंचा दो। दस रूपये मिलेंगे । पर सामान लेकर भाग तो न जाओगे ।
जनाब, रोज़ी से धोखा करके कहाँ जाऊँगा।
रेहडी का पूरा ध्यान रखना। कुछ नुकसान हुआ तो पैसे तुम्हीं को भरने होंगे।
नहीं जनाब, मैं पूरा ध्यान रखूंगा । राजू ने मालिक को अश्वस्त किया।
दस रुपये क्या मिले जैसे राजू को जागीर मिल गई । रेहडी पर दो मन सब्जियां लाद वह दो मील ऐसे दौड़ा मानो पंख लगा कर उड़ रहा हो। चलते चलते उसके मन में कई विचार भी कुंचालें भरने लगे । मां न जाने कैसे गुजारा कर रही होगी । अब कुछ दिनों में मां को कुछ पैसे भेजूंगा । माँ की धोती में अनगिनत पैबंद लगे हैं। एक नई धोती भी भेजूंगा।
अपने सपनों में डूबा राजू दौड़ा चला जा रहा था। उसने देखा ही नहीं सड़क के दूसरी और बहुत से लोग शोर मचाते हुए भाग रहे थे। किसी के हाथ में लाठी और कोई निहत्था।
वैश्णव होटल पहुंच कर राजू ने रेहडी पर लदी सब सब्जियाँ उतारी और अपने माथे से पसीना पोंछते हुए होटल के एक व्यक्ति से पूछा - भैया, पानी मिलेगा। वहां नल है, जितना चाहो पी लो। थका मांदा था राजू । पेट भर पानी पिया और अपनी कमीज की बाजू से मुंह पोंछ कर चलने को ही था कि वह व्यक्ति उसके पास आया और बोला - संभल कर जाना, शहर के हाल ठीक नहीं हैं।
क्यों क्या हुआ? राजू ने हैरानी से पूछा।
होना क्या है वही दंगा फसाद। मार काट और आगजनी। कुछ लोग मारे जाएंगे। अमीरों का कुछ बिगडेगा नहीं, गरीबों के मुंह से निवाला छिनेगा।
चिंतित राजू ने सोचा जल्दी से मंडी पहुंच कर रेहडी मालिक के हवाले करता हूं और अपने दस रुपए ले लेता हूँ। मुझे इस दंगे फसाद से क्या लेना देना। वह थका था लेकिन खाली रेहडी और भारी मन लिए तेजी से वापस चल पडा।
अभी आधा मील ही चला होगा कि उसे सामने से गुस्साई भीड़ आती दिखाई दी । वह जल्दी से पास की गली में घुस गया। उसका दिल जोर जोर से धड़क रहा था। भीड़ का शोर पास आता सुनाई दे रहा था । राजू उकड़ूं हो कर रेहडी के पीछे छुप गया।
अचानक राजू को अपने पीछे से आवाज आई । वह ज्यों ही पलटा उसके सिर पर एक लाठी का वार हुआ। राजू चक्कर खा कर गिरा। इसके बाद क्या हुआ उसे कुछ पता न चला। बाद में जब उसे होश आया तो रात हो चुकी थी । अंधेरे में उसने अपने दुखते सिर को पकड़ा तो वह गीला था। राजू को धीरे धीरे सब याद आने लगा। उसे रेहडी की याद आई। वह उठा और रेहडी को ढूंढने लगा, जो कुछ ही दूर उसे अधजली हालत में मिली।
तभी सीटी बजाती पुलिस की एक टुकडी वहां पहुंची। ऐ, यहां क्या कर रहे हो, एक हवलदार चीख कर बोला। मालूम नहीं है कर्फ्यू लगा है । इससे पहले कि राजू कुछ बोलता पुलिस ने उसकी पीठ पर एक डंडा लगाया और उसे थाने पहुंचा दिया। वहां उस जैसे और भी बहुत से लोग थे।
राजू ने हवलदार के पांव पकड लिए और अपनी रामकथा सुनानी चाही। हवलदार बोला अब छोडऩा तो मुश्किल है पर अगर सौ रुपए दो तो कोशिश करता हूँ। राजू ने जेब से दो महीनों में बचाए साठ रुपये निकाले और हवलदार के सामने रख दिये।
-अकुभा

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