Friday, June 26, 2015

चाबी वाली गाड़ी - a short story

चाबी वाली गाड़ी
राजू ने आखिर आज अपने पापा को बाज़ार चलने के लिये मना ही लिया और उनकी सायकल के पीछे बैठ कर चल पड़ा।
बहुत दिनों से राजू ने ज़िद पकड़ी थी कि उसे वही चाबी वाली गाड़ी चाहिये जो उसके मित्र अजय को उसके पापा ने ले कर दी थी। हर रोज़ अजय बड़े गर्व से अपनी गाड़ी में लगी चाबी को घुमाता और फिर उसे ज़मीन पर छोड़ देता। गाड़ी बड़ी तेज़ी से भागती हुई आगे की और बढ़ती और सारे बच्चे पीछे पीछे शोर मचाते भागते जब तक गाड़ी की चाबी समाप्त ना हो जाती। अजय सीना फुलाये अपनी गाड़ी को उठाता और कहता "बस आज के लिये इतना ही।" सारे बच्चे याचना करते "इतना कम क्यों? कुछ देर तो और चलाओ".
नहीं, मुझे घर जाना है। मां इंतज़ार करती होगी, डांटेगी।
अभी अभी तो तुम आये थे, कुछ देर तो रुको। इस तरह से मानाने पर वह रुक जाता और बच्चे गाड़ी का और मज़ा लेते। कभी कोई बच्चा कहता "एक बार मुझे भी चलाने दो ना" तो अजय कहता "अरे बहुत मेहंगी है। टूट गयी तो"।
राजू कहता मेरे पापा इससे भी बड़ी गाड़ी ले कर देंगे।
घर आ कर राजू अपनी मां के पास जा कर कहता "मुझे भी चाबी वाली गाड़ी ले कर दो ना।" मां उसे प्यार से समझाती "देखो, तुम्हारे पापा रोज़ पैदल काम पर जाते हैं। सबसे पहले उनके लिये एक सायकल लेनी है। सायकल होगी तो तुम भी उनके साथ घूमने जाना। फिर तुम्हारे लिये चाबी वाली गाड़ी भी लेंगे। राजू पैर पटकते हुए ज़िद करता "हम पहले गाड़ी क्यों नहीं ले सकते। मुझे गाड़ी ही चाहिये पहले।"
मां राजू का ध्यान बंटाने के लिये बोलती "आज मेरा राजा बेटा क्या खायेगा? गुड़ के साथ रोटी खायेगा?" और राजू खाना खाने में व्यस्त हो जाता। बाद में जब उसके पिताजी अपना टिफिन वाला थेला पकड़े घर में प्रवेश करते तो राजू भागता आता और कहता "पापा, आज हमने अजय की चाबी वाली गाड़ी खूब चलाई पर उसने हमें नहीं नहीं चलाने दी, खुद ही चलाता रहा। मुझे भी ऐसी गाड़ी ले कर दो ना." मां उसी डाँट कर कहती "पापा थके हुए आयें हैं सांस तो लेने दो। चलो जा कर पढ़ाई करो। पापा जब खाना खा लेंगे तब बात करना।" पिताजी खाना खा कर जब तक आते राजू सो चुका होता। कभी कभी सोते सोते वह फुसफुसाता "अबकी मेरी बारी. मुझे भी तो चलाने दो।" मां उसके सर पर हाथ फेरती और राजू शान्ती से सो जाता।
और फिर एक दिन पापा नयी सायकल ले कर आये। घर में जैसे खुशी की लहर दौड गयी. राजू फूला नहीं समा रहा था। कभी वह सायकल के पैडल पर पांव रख कर मूँह से सीटी की आवाज़ निकलता, कभी सायकल की घंटी बजाता। माँ ने गुड़ की खीर बना कर पडोसियों को भी खिला दी। पड़ोस के कई बच्चे भी एकत्रित हो गए और राजू ने गर्व से सबको बताया कि उसके पापा ने सबसे अच्छी वाली सायकल खरीदी है। शाम ढलते ढलते राजू को फिर से चाबी वाली गाड़ी की याद आ गयी। वह अपने पापा के पास जा कर बैठ गया और बड़ी आशा से बोला "पापा, अब तो आपकी सायकल भी आ गयी। अब आप मेझे चाबी वाली गाड़ी दिलवाओगे ना।"
ज़रूर दिलवायेंगे बेटा।
तो कल चलें बाज़ार, पापा। राजू ने खुश होते हुए कहा।
कल नहीं, अभी दीवाली आने वाली है। इस दीवाली पर हम अपने राजू को अच्छी सी गाड़ी लेकर देंगे।
चाबी वाली गाड़ी। राजू ने चहकते हुए जोड़ा।
हाँ हाँ, चाबी वाली गाड़ी।
और राजू दीवाली की प्रतीक्षा में दिन गिनने में लग गया। हर रोज़ वह माँ और पिता से निश्चित कर लेता कि दीवाली पर उसकी मनवांछित गाड़ी के कार्यक्रम में कोई परिवर्तन तो नहीं होगा। उसने अपने सब मित्रों को भी बता दिया कि आने वाली दीवाली पर उसके पिता उसके लिये चाबी वाली गाड़ी ले कर देंगे। अंततः वह दिन भी आ गया जब राजू ने पापा से कहा कि दीवाली को केवल चार दिन शेष हैं और आज आप घर पर भी हो। आज तो हमें बाज़ार जाना ही चाहिये गाड़ी ख़रीदने के लिए। "ठीक है, चलो चलते हैं।" पापा ने कहा। राजू उचक कर सायकल के पीछे लगे कैरियर पर बैठ गया।
बाज़ार पहुँच कर पापा ने सायकल को स्टैण्ड पर ताला लगा कर रखा और राजू का हाथ पकड़ कर खिलौनों वाली एक दुकान पर जा पहुँचे। दुकानदार ने कई गाड़ियाँ दिखाईं पर राजू को कोई पसंद न आई। कोई छोटी थी तो किसी में चाबी नहीं थी। पिता ने कहा - चलो हम दूसरे बाज़ार चलते हैं। वापस जब सायकल स्टैण्ड पर पहुंचे तो सायकल वहाँ नहीं थी जहाँ वे लोग खड़ा कर के गए थे। पापा ने आस पास सब लोगों से पूछा। किसी से कुछ न पता चला। परेशान हो वे पास की चौकी पर हवलदार के पास गये और सायकल की चोरी की रपट लिखाई।
चौकी से बाहर निकल कर पापा एक पुलिया पर सिर झुका कर बैठ गए। राजू अपने पापा को परेशान देख कर विचलित हो रहा था। कुछ देर चुप रह कर वह बोला "पापा, पुलिस चोर को ज़रूर पकड़ लेंगी और फिर हमारी सायकल वापस मिल जाएगी।"
कुछ क्षण चुप रह कर पापा उठे और बोले "चलो, हम पैदल ही चलते हैं। दूसरी दुकान से तुम्हारे लिए अच्छी सी गाड़ी ख़रीदेंगे।"
नहीं पापा, मुझे अभी याद आया कि मास्टर जी ने कल स्कूल में एक कविता याद कर के आने को कहा था। इसके लिए मुझे अभी घर जाना होगा। पापा ने राजू को अपनी पीठ पर उठा लिया और घर की ओर चल पड़े।

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