Friday, June 26, 2015

ये कारवाँ

जब वक़्त ने और धूप ने मौक़ा दिया
ज़िंदगी के कई मुक़ाम आये गये
गुज़रे लमहे, दिन, माह, और साल
तजुरबे की तहों में उलझे कुछ उजले बाल
करवटें लीं ज़िन्दगी ने बहुत
बदलें नहीं सिर्फ़ हमारे हालात
बदलीं शक्लें, बदले तेवर
बदले लोगों के ख्यालात
कभी जो एक सपना था
कल्पना की एक लम्बी उड़ान
धरती पर टिके खम्बे से
जीवन ने परछाईं दी तान
धूल के उड़ते ग़ुबार में
गुज़रे ज़मानों की हैं दासतानें
रुकता कहाँ है ये कारवाँ
किसको पता, कौन जाने - अकुभा

No comments: