किसने कहा सूरज निकलने पर दिन होता है
कितनी ही आत्माएँ भरी दोपहर में भी
अंधेरों में भटकती रहती हैं
खुली आँखों से भी रोशनी का अहसास नहीं होता
कितने जीव निर्जीव की शक्ल पड़े रहते हैं
महिमा किसकी होती है
महिमा होती है जीतने वाले की
भीड़ केवल जीतने वाले के पीछे चलती है
जैसे पाईड पाइपर के पीछे
चूहे चलते हैं
क्या इन चूहों का भीड़ बना कर चलना
लोकतंत्र का द्योतक है
किसे अपने भविष्य का पता है
लेकिन जो कूएँ में कूदता है
क्या उसे तनिक भी अपने
संभावित भविष्य का
अहसास नहीं होता
कौन जानता है अपने भले की बात
रोटी के लिए कूद जाने वाला जानवर
कहाँ तय कर पाता है
कि रोटी मुहँ में दबाए
जब वह नीचे आएगा
तब वह कहाँ गिरेगा
⁃ अकुभा
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