तराशा था ईश्वर को
भव्यता व एकाग्रता सहित
खण्डित कर मैंने ही
विसर्जित कर डाला
हाय रे क्यों न तराशा मैंने
मन को अपने सुंदर स्वप्न में
क्यों न पहनी फूलों की माला
⁃ अकुभा
भव्यता व एकाग्रता सहित
खण्डित कर मैंने ही
विसर्जित कर डाला
हाय रे क्यों न तराशा मैंने
मन को अपने सुंदर स्वप्न में
क्यों न पहनी फूलों की माला
⁃ अकुभा
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