Saturday, June 8, 2019

कविता

कविता भी अजीब चीज़ है
कवि ने चाहा तो सूरज को पकड़ा 
गैस के ग़ुब्बारे की तरह 
धागे से उड़ाया
और छत पर बाँध आया
चाँद के बताशे को
बेतहाशा चूमा 
ख़्वाबों के झूले पर बैठ
प्रेयसी के होंठों से लगाया
बदलते मौसमों से
लेकर कुछ नमी
हथेली पर बीज रख
हसरतों का ऊँचा पेड़ लगाया
प्रीत की ड्योढ़ी में 
बरसों से मुंतज़र 
कवि ने लिखी कविताएँ 
बदले में केवल ढेर सा दर्द पाया
जिसका इंतज़ार था
बस वो ही नहीं आया
बस वो ही नहीं आया। 
⁃ अकुभा

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