Saturday, June 8, 2019

किताबें



पड़ी हैं मेरे सीने में बहुत बड़ी सी किताबें
लिखीं हैं जिनमें वो बातें जो तुमसे कह नहीं पाया

बहुत सी ख्वाईशें हैं, और बहुत सी उम्मीदें भी
कहनी थीं जो तुमसे मगर कभी मैं कह नहीं पाया

कुछ दर्द भीं हैं और शिकवे और शिकायत हैं
जिन्हें न कहने की यहाँ पुरानी रवायत हैं

कुछ ऐसे क़िस्से हैं जो तुमसे करने थे मुझे साझा
मगर डर था सुन कर न जाने तुम क्या क्या सोचोगी

ज़िंदगी की बहुत सी कड़वी मीठी यादें हैं मेरी
जिन्हें सुन कर न जाने तुम ख़ुश होगी या न होगी

सोचता हूँ कभी ये सारी किताबें तुमको दे डालूँ
ज़हन हल्का मैं कर डालूँ और चैन से सो जाऊँ 

मगर डरता हूँ बदले में कहीं तुम भी न दे डालो
और बड़ी किताबें, बोझ में जिनके मैं दब जाऊँ 
⁃ अकुभा

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